Friday, November 21, 2008

अस्पताल में इलाज नहीं मौत मिली!

कुएं में मीन प्यासी! इस कहावत को बदलकर कर देना चाहिए -'अस्पताल में इलाज नहीं'। जबलपुर के मेडिकल कॉलेज अस्पताल ने इस कहावत को गुरुवार को चरितार्थ भी कर दिया। 48 साल के सुरेन्द्र दिवाकर है अपने छोटे भाई मनीष के साथ अपने कजिन को देखने वहां पहुंचे, कजिन तो पहले ही डिस्चार्ज हो चुके थे पर वहां सुरेन्द्र भैया की तबियत बिगड़ गई, मनीष घबरा गए क्योंकि तीसरी मंजिल पर आए हार्ट अटैक के बाद सुरेन्द्र भैया को लिफ्ट बिगड़ी होने से नीचे केजुअल्टी तक लाना आसान नहीं था। मनीष को वहीं सामने के वार्ड में ड्यूटी डॉक्टर दिखा तो कुछ आस बंधी, लेकिन उस डॉक्टर ने सीधे सीधे कह दिया- 'वह तो हाथ भी तभी लगायेगा जब उसकी एंट्री हो जायेगी। मनीष के रोने, हाथ पाँव जोड़ने का उसपर कोई असर नहीं हुआ और जब एंट्री के बाद इलाज शुरू हुआ तब तक एक के बाद एक दो अटैक आ गए और सुरेन्द्र भैया इस दुनिया से चले गए।
जिस किसी ने भी सुपरहिट फ़िल्म मुन्नाभाई एमबीबीएस देखी हो तो उसे जरुर याद होगा जब संजय दत्त मामू से पूछता है- अगर मरीज फार्म भरते भरते मर गया तो फाल्ट किसका माना जाएगा? मेडिकल अस्पताल प्रबंधन ने लापरवाह डॉक्टर की जाँच शुरू की है, पर कोई कार्यवाई हो पायेगी इस पर शक है.

Sunday, November 16, 2008

कर्म भूमि

जबलपुर ओशो, महर्षि महेश योगी जैसे महापुरुषों की कर्म भूमि है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस को 1939 में यहीं कांग्रेस का अध्यक्ष बनने का सौभाग्य मिला था वह भी गांधीजी द्वारा खड़े किए उम्मीदवार के खिलाफ। बीमार नेताजी जी ने सित्ताभी पत्तारम्मैया को हराकर कांग्रेस में युवाओं का महत्व बढ़ा दिया था.इस शहर की हर गली किसी न किसी युग पुरूष की यादें संजोये हुए है. इस शहर की उर्जा को न पहचानने वालों ने इसे गर्त में धकेलने के प्रयास किए पर वो न पहले सफल हुए न भविष्य में होंगे.

Friday, November 14, 2008

पर्दे के पीछे

मेरा यह नया ब्लॉग उन लोगो को समर्पित है जो अपने प्रभाव से सच्ची ख़बरों को प्रकाशित होने से रुकवा देते हैं। इस ब्लॉग पर ऐसी ही सच्ची खबरें देखने मिलेंगी लेकिन सकारात्मक स्वरुप में। मेरे दोस्त यह कह सकते हैं कि फ़िर इस ब्लॉग कि जरूरत क्या है? इस प्रश्न का जवाब आने वाले समय में उन्हें अपने-आप मिल जाएगा.