Friday, February 27, 2009

किस राह पर हैं हम

जबलपुर में अचानक अपहरणों की बाढ़ आ गई है। आए दिन अपहरणों की खबरें सरगर्म रहती हैं। कभी बच्चे का अपहरण तो कभी महिला का और कभी बड़े लोगों का। ऐसा लगता है कि जैसे जबलपुर बिहार की राह पर है। अगर किसी को यह अतिश्योक्ति लगे तो उसे पुलिस का रिकॉर्ड देखना चाहिए क्योंकि कई बार अपहरण की बजाय वह गुमशुदगी के मामले कायम कर अपनी इतिश्री कर लेती है। बहरहाल, अपहरणों ने आम जबलपुरिओं को दहशत में जरूर डाल दिया है। अब यहाँ के लोग भी अपने ड्राईवर और घरेलु नौकरों को शक की निगाह से देखने लगे हैं। आने वाला समय ऐसा होगा जब सेकुरिटी सर्विस वाले चौकीदारों के अलावा ड्राईवर, घरेलु नौकर आदि की सेवाएं देने लगेंगे। हालाँकि तब भी कोई गारंटी नहीं होगी कि अपहरण नहीं होंगे पर इतना जरूर लगने लगेगा कि या तो हम बिहार की राह पर हैं या फ़िर महानगरों की.

Tuesday, February 3, 2009

अपने गिरेबान में झांको

हजारों लोग नर्मदा जयंती के जाम में फंसे और पिसे, लेकिन जिम्मेदार लोगों के कानों में जूं नहीं रेंगी। रेंगती भी क्यों? अधिकांश तो घर में चैन से सो रहे थे। जो श्रद्धा या ड्यूटी की मजबूरी के कारण वहां मौजूद थे वो जाम को ख़त्म करने की बजाय ख़ुद निकलने की जुगत में लगे थे। इस चक्कर में इन लोगों ने यातायात के नियम कायदों को ताक पर रख दिया और जाम को बद से बदतर बना दिया। आए दिन जबलपुर की सड़कें जाम से परेशान रहतीं हैं। लोग समय से अपने काम पर नहीं पहुँच पाते, एंबुलेंस में मरीज दम तोड़ देते हैं, इस सबके पीछे जो लोग जिम्मेदार हैं वो माफिया के साथ मिलकर जमीने, पहाड़, तालाब, नदियाँ बेचने में व्यस्त हैं। इन लोगों को अपने गिरेबां में झाँककर देखना चाहिए कि जिस काम की उन्हें तनख्वाह मिल रही है उसे छोड़ कर वे सारे वो काम कर रहे हैं, जो अनैतिक की श्रेणी में आते हैं।