Saturday, March 14, 2009

फ़िर ना हो ऐसी होली

होली ने इस बार ऐसा गजब ढाया कि लगा जबलपुर फ़िर से संस्कारधानी से अपराधधानी बन गया है। शहर की ऐसी कोई गली नहीं थी जहाँ चाकू-तलवारें ना चली हों। शराब की दुकाने हर वक्त खुली रहीं, हुडदंगिओं ने सरेआम छेड़खानी की, विरोध करने वालों हमले कर दिए, पुलिस कर्मी झगडों को रोकने की बजाय मूक दर्शक बने रहे। मारपीट और हथियारबाजीकी घटनाओं ने आम आदमी को दहला कर रख दिया। अरसे बाद जबलपुर में इतनी आपराधिक घटनाएँ हुईं कि चार सैकडा से अधिक लोग घायल होकर अस्पताल पहुँच गए। इनमे से कई की हालत गंभीर है। उनके परिवारजनों पर क्या बीत रही होगी ये वो ही जानते हैं। बहरहाल, मेरी तो भगवानसे यही प्रार्थना है कि फ़िर ना हो ऐसी होली।

Friday, February 27, 2009

किस राह पर हैं हम

जबलपुर में अचानक अपहरणों की बाढ़ आ गई है। आए दिन अपहरणों की खबरें सरगर्म रहती हैं। कभी बच्चे का अपहरण तो कभी महिला का और कभी बड़े लोगों का। ऐसा लगता है कि जैसे जबलपुर बिहार की राह पर है। अगर किसी को यह अतिश्योक्ति लगे तो उसे पुलिस का रिकॉर्ड देखना चाहिए क्योंकि कई बार अपहरण की बजाय वह गुमशुदगी के मामले कायम कर अपनी इतिश्री कर लेती है। बहरहाल, अपहरणों ने आम जबलपुरिओं को दहशत में जरूर डाल दिया है। अब यहाँ के लोग भी अपने ड्राईवर और घरेलु नौकरों को शक की निगाह से देखने लगे हैं। आने वाला समय ऐसा होगा जब सेकुरिटी सर्विस वाले चौकीदारों के अलावा ड्राईवर, घरेलु नौकर आदि की सेवाएं देने लगेंगे। हालाँकि तब भी कोई गारंटी नहीं होगी कि अपहरण नहीं होंगे पर इतना जरूर लगने लगेगा कि या तो हम बिहार की राह पर हैं या फ़िर महानगरों की.

Tuesday, February 3, 2009

अपने गिरेबान में झांको

हजारों लोग नर्मदा जयंती के जाम में फंसे और पिसे, लेकिन जिम्मेदार लोगों के कानों में जूं नहीं रेंगी। रेंगती भी क्यों? अधिकांश तो घर में चैन से सो रहे थे। जो श्रद्धा या ड्यूटी की मजबूरी के कारण वहां मौजूद थे वो जाम को ख़त्म करने की बजाय ख़ुद निकलने की जुगत में लगे थे। इस चक्कर में इन लोगों ने यातायात के नियम कायदों को ताक पर रख दिया और जाम को बद से बदतर बना दिया। आए दिन जबलपुर की सड़कें जाम से परेशान रहतीं हैं। लोग समय से अपने काम पर नहीं पहुँच पाते, एंबुलेंस में मरीज दम तोड़ देते हैं, इस सबके पीछे जो लोग जिम्मेदार हैं वो माफिया के साथ मिलकर जमीने, पहाड़, तालाब, नदियाँ बेचने में व्यस्त हैं। इन लोगों को अपने गिरेबां में झाँककर देखना चाहिए कि जिस काम की उन्हें तनख्वाह मिल रही है उसे छोड़ कर वे सारे वो काम कर रहे हैं, जो अनैतिक की श्रेणी में आते हैं।

Thursday, January 29, 2009

कुछ तो करो टिकट मांगने वालों

एक बार फ़िर टिकट मांगने वाले सक्रिय हो गए हैं, इस बार मौका हैं लोकसभा चुनाव का। भाजपा हो या कांग्रेस, दोनों ही पार्टियों में टिकट मांगने वालों की कोई कमी नहीं हैं। भाजपा के जो वर्तमान सांसद हैं राकेश सिंह वो टिकट की दौड़ में काफी आगे हैं, लेकिन भाजपा में उनका विरोध करने वाले भी कम नहीं हैं। कांग्रेस में जो लोग टिकट मांग रहे हैं उन्हें मालूम हैं कि टिकट आसानी से मिल सकता हैं बशर्ते वे लड़ने की हिम्मत जुटा लें। अब प्रश्न यह उठता हैं कि टिकट मिलेगा किसे? इस प्रश्न का जवाब खोजने से पहले एक और प्रश्न हैं कि टिकट मांगने वालों ने किया क्या हैं? राकेश सिंह को ही लें तो एकाध उडान, एकाध ट्रेन के लिए किए गए उनके प्रयासों को सफलता तो मिली हैं, लेकिन उनकी झोली में ऐसा कुछ नहीं हैं जो उन्हें टिकट दिलाने के लिए पर्याप्त माना जाए, फ़िर भी उनका जो सबसे बड़ा प्लस पॉइंट है वह है उनकी साफ सुथरी छवि। पर कांग्रेस में ऐसा कोई भी दावेदार नहीं है, जिसकी छवि दागदार न हो। कांग्रेस में ऐसा कोई दावेदार भी नहीं है जिसने पद में रहते या न रहते हुए कोई ऐसा काम किया हो जिससे वोट मिल सकें। यदि विहंगम दृष्टि डाली जाए तो साफ नजर आएगा कि एक भी दावेदार को पूरी तरह योग्य कि श्रेणी में नही रखा जा सकता.